सक्र जिमि सैल पर ।
अर्क तम-फैल पर ।
बिघन की रैल पर ।
लंबोदर देखीये ॥
राम दसकंध पर ।
भीम जरासंध पर ।
भूषण ज्यो सिंधु पर ।
कुंभज विसेखिये ॥
हर ज्यो अनंग पर ।
गरुड ज्यो भूज़ंग पर ।
कौरवके अंग पर ।
पारथ ज्यो पेखिये ॥
बाज ज्यो विहंग पर ।
सिंह ज्यो मतंग पर ।
म्लेंच्छ चतुरंग पर ।
सिवराज देखीये ॥
सिवराज देखीये ॥ सिवराज देखीये ॥
सिवराज देखीये ॥ सिवराज देखीये ॥
-कविराज भूषण
अर्थ :
ज्या प्रमाणे ईंद्र पर्वताचा, सुर्य अंध:काराचा व विग्नहर्ता गणराज विघ्नसमुदायाचा नाश करतो, (१)
किंवा ज्या प्रमाणे रामाने रावणाचा व भीमाने जरासंधाचा नाश केला, अगस्त्ति ऋषींनी समुद्राचा घोट घेतला, (२)
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