पम्पा मानसर आदि तलाब लागे
जेहिके परन मैं अकथ युग गथ के
भूषन यों साज्यो रायगढ सिवराज रहे
देव चक चाहि कै बनाए राजपथ के
बिन अवलम्ब कलिकानी आसमान मै है
होत बिसराम जहाँ इंदु औ उद्य के
महत उतंग मनि जोतिन के संग आनि
कैयो रंगचक हा गहत रविस्थ के
-कविराज भूषण
अर्थ :
जेथे निवास करि रायगढी नृपाळ
पंपासरोवर समान सरें विशाल
तेथील राजपथ सुन्दर पाहुनी ते
आश्चर्य होई हृदयी सुरदानवांते
आधारहीन रविचन्द्र नभी फिरुनी
घेतात विश्राम इथें रथ थाम्बवूनी
येथील हर्म्यमणिमाणिक दीप्तियोगे
रक्तप्रभा वरिति ती रविची अथांगे
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